मैंने हिम्‍मतों से हर पल को जीया है

असफलताओं के दौर को भी जी भर के जीया है

विष को कोई छूता भी नहीं

पर मैंने उसे शिव की तरह पीया है

जीवन के हर प्रश्‍न को

युधिष्ठिर की तरह हल किया है

पर उनसे क्‍या गिले‍शिकवे करूं

जिन्‍होंने हरदम मुझे ठगा है

कहना है तो सिर्फ इतना ही

कि हम वह नहीं जो यूं ही मिट जाएंगें

यूं ही नहीं हम खाक में मिल जाएगें

हम तो वह दीवार नहीं

जो एक धक्‍के से हिल जाएगें,

यूं ही खडे रहेंगें अडिग

हर वक्‍त, हर समय हम याद आएगें

जब भी बेबसी में तुम्‍हारी आंख का आंसू गिरेगा

और पश्‍चाताप तुम्‍हे रुलाएगा

दोनों हाथ से उसे थामने आ जाएगें

विषाद और अवसाद तो है ही नहीं

तुमसे कभी कोई शिकायत भी नहीं

आत्‍मबल से वज्र के सही

पर मन से तो मिटटी के माधो हैं

तुम्‍हें अगर पहचान नहीं

तो भी हमें कोई गिला शिकवा नहीं

क्‍योंकि मेरे जीवन में असफलताओं के दौर अभी बाकी हैं

विष के कई प्‍याले पीना अभी बाकी है।