मैंने हिम्‍मतों से हर पल को जीया है

असफलताओं के दौर को भी जी भर के जीया है

विष को कोई छूता भी नहीं

पर मैंने उसे शिव की तरह पीया है

जीवन के हर प्रश्‍न को

युधिष्ठिर की तरह हल किया है

पर उनसे क्‍या गिले‍शिकवे करूं

जिन्‍होंने हरदम मुझे ठगा है

कहना है तो सिर्फ इतना ही

कि हम वह नहीं जो यूं ही मिट जाएंगें

यूं ही नहीं हम खाक में मिल जाएगें

हम तो वह दीवार नहीं

जो एक धक्‍के से हिल जाएगें,

यूं ही खडे रहेंगें अडिग

हर वक्‍त, हर समय हम याद आएगें

जब भी बेबसी में तुम्‍हारी आंख का आंसू गिरेगा

और पश्‍चाताप तुम्‍हे रुलाएगा

दोनों हाथ से उसे थामने आ जाएगें

विषाद और अवसाद तो है ही नहीं

तुमसे कभी कोई शिकायत भी नहीं

आत्‍मबल से वज्र के सही

पर मन से तो मिटटी के माधो हैं

तुम्‍हें अगर पहचान नहीं

तो भी हमें कोई गिला शिकवा नहीं

क्‍योंकि मेरे जीवन में असफलताओं के दौर अभी बाकी हैं

विष के कई प्‍याले पीना अभी बाकी है।






पिछले कुछ दिनों के घटनाक्रम पर नजर डाली तो पाया कि श्रीराम सेना की गूंज अनेकों जगह पर है। श्रीराम सेना जिन व्यक्तियों ने बनाई मैं उनकी मानसिकता, ध्येय, लक्ष् और उद्देश् तो नहीं जानता पर एक आम नागरिक होने के नाते इतना तो जानता हूं कि किसी भी व्यक्ति या संस्था का काम मारना पीटना या लडकियों के साथ अभद्रता के साथ पेश आना नहीं है। वह पब जहां पर यह घटनाक्रम हुआ अब भी खुला हुआ है। अगर शराब की दुकानें सरकार की नीति के तहत खुली हैं तो ग्राहक के साथ मार पीट करके क्या हासिल होने वाला है। अगर पब अनाधिकत हैं तो उन्हें बंद करने की कानूनी कार्यवाही करिए। ऐसी संस्था जो पब में जाकर निरीह लोगों से पंगा लेती हो उसका नाम श्रीराम सेना क्यों। श्रीराम जन नायक थे। भगवान श्रीराम के नाम को ऐसे लोगों ने नि:संदेह शर्मसार किया है। जो लोग श्रीराम सेना के विरोधी हैं वह क्या इन्हें सडक पर उतर कर नंगा करके पीटे तो हिसाब बराबर हुआ समझना चाहिए। फिर तो काबुल में, पाकिस्तान में और इस तरह के अन् देशों में हो रहा है justified हो जाएगा। यदि धर्म के नाम पर कुछ करना ही है तो लडकियों को संस्कार दीजिए कि वह ऐसी जगहों पर जाएं। शराब की दुकान पर अवयस् लडके खुले आम शराब पीते हैं, कहीं उनकी मोटर साइकिल खडी है, कहीं खुद खडे हुए गाली गलौज कर रहे हैं उन्हें रोकिए। ऐसी सडकों पर रातभर रखवाली करिए जिन पर दिन में भी लडकियों का चलना दुश्वार है। ऐसी बसों में गुण्डों को अपनी ताक दिखाइए जहां खुले आम लडकियों पर फिकरे कसे जाते हैं। हिंदू तो वह हैं जो अच्छे प्रयोजनों के लिए महर्षि दधीचि की तरह अपनी अस्थियां भी दान देने की सामर्थ् रखता हैं और अधर्म होने पर अपने बंधु बांधवों का विरोध/संहार करने पर भी नहीं हिचकिचाता।


(अतुल शर्मा)


जब हो हर तरफ तन्हाई
रात हो घिर आई
धीरे से तुम सिसकना मत
चाँद से कुछ बातें करना
मुस्कराना
इठलाना
गुदगुदाना
और फिर प्यार से
ग़मों को अपने भूल जाना
देखोगे कि सुबह फैली हुई है
अपनी सौगात लेकर
रात की कालिमा को धोकर
जीवन निराशा की नहीं सुख की भाषा है
इस से भागना नहीं
अपने आगोश में पकड़ लेना
प्यार बांटना गम नहीं
मुस्कुराते रहना
सिसकना रोना नहीं.
(‘पतझड सावन वंसत बहार’ संकलन में प्रकाशित कविता)







(अतुल शर्मा)

रिश्‍ते जो कभी होते हैं अपने से
और बेगाने से कभी
रिश्‍ते जो होते हैं दिल के करीब
और हजारों मील दूर होते हैं कभी
रिश्‍ते जो कभी हंसाते हैं
और रुलाते भी कभी
रिश्‍ते जो कभी होते हैं मीठे से
और हो जाते हैं कडवे कभी
रिश्‍ते जो कभी गुदगुदाते हैं
और देते हैं अकुलाहट कभी
रिश्‍ते जो होते हैं सहज अभी
और देने लगते हैं झुंझलाहट कभी
रिश्‍ते जो मस्‍तक गर्वित करते हैं
और शर्म से गर्दन झुकाते हैं कभी
रिश्‍ते जो कभी त्‍याग मांगते हैं
और जीवन भी कभी
रिश्‍ते जो कभी
अंगुली पकडकर चलाना सिखाते हैं
क्‍यों आ जाते हैं कांधे पर कभी ?

(‘पतझड सावन वंसत बहार’ संकलन में प्रकाशित कविता)





(अतुल शर्मा)

जब दिल में दर्द हो
आंखों में आंसू की बूंदें हों
भीड में भी अकेलापन हो
आसपास कोई चाहने वाला न हो
जब अपने शब्‍द ही
लौट कर वापस आते हों
ख्‍यालों में भी तनहाइयॉं हों
न कुछ करने को हो
और गर कुछ करना चाहो भी
तो उठने की हिम्‍मत न हो
चुपचाप दो आसूं बहा लेना मेरे दोस्‍त
हो सकता है तुम्‍हारे जनाजे पर
कोई रोने वाला भी न हो ।
........ अतुल शर्मा






(अतुल शर्मा)

नभ से गिरती बारिश की कोई बूँद
जब धीरे से तुम्‍हें स्‍पर्श कर ले
या ओस की पहली किरण
जब तुम्‍हें ‍हल्के से चूम ले
ठंडी हवा का मस्‍त सा झोंका
तुम्‍हें प्‍यार से सहला दे
चांदनी की हलकी सी रुमानियत
तुम्‍हें धीरे से छू जाए
भीगी माटी की सौंधी सी खुश्‍बू
तुम्‍हें प्‍यार से सराबोर कर दे
तब
तुम एक बार मुझे याद करना
मेरे प्‍यार की गर्माहट को महसूस करना
तपती धूप में रिमझिम फुहारों सा मेरा प्‍यार
सर्द जाडों की रातों में सुलगती आग सा मेरा प्‍यार
दूर तक फैले रेगिस्‍तान में हो जैसे
छोटा सा नखलिस्‍तान मेरा प्‍यार
कांटों के बीच सुर्ख गुलाब सा प्‍यार
बरसते बादलों में इद्रधनुष सा मेरा प्‍यार
स्‍वार्थ की दुनिया के बीच यह मासूम प्‍यार
दो दिलों को जोडता यह कैसा खुमार
सुहाने सफर की नींद सा यह प्‍यार
सुबह की उनींदी बोझिल आंखों का प्‍यार
हिमगिरी से उतरती गंगा सा प्‍यार
पहाड से गिरते झरनों सा प्‍यार
पक्षि‍‍यों के कलरव सा गूंजता यह प्‍यार
दुनिया से अहसासों में सबसे खूबसूरत यह प्‍यार
इन सब अहसासों में तुम मुझे याद करना
और फिर मुझसे सिर्फ मुझसे प्‍यार करना।

अतुल शर्मा