यह शहर जाना पहचाना है
इसकी गलियां जानी पहचानी हैं
पर जब भी मैं इनसे गुजरता हूं
अक्सर गलत मोड मुड जाता हूं ।
लोग मिलते हैं
पर पहचानते नहीं
पूछने पर कहते हैं
हम आपको जानते नहीं ।
न जाने कैसे
मतलब होने पर
उन्हें याद हो ही जाता है
कि हम उनके बहुत करीब हैं ।
अब मैं भी इसी शहर का बाशिंदा हूं
मैं भी इसी भीड में शामिल हूं
ऐसी चाल को टेढी न कहना
इसको जमाने का दस्तूर कहते हैं दोस्तों
इस शहर को मतलबपरस्त न कहना
वर्ना मैं बुरा मान जाऊगां दोस्तों !


अगर सच्‍चे दिल से मांगी है
भगवान से कोई दुआ ,
तो वह जरुर कबूल होती है,  
भगवान अगर आज नहीं देंगें,  
तो परेशान न होना दोस्‍तों ,
कई बार बरसों बाद भी ,
उसके दरबार में,  
सच्‍ची दुआ कबूल होती है ।



माफ करिएगा दोस्‍तों
के बहुत दिनों बाद
आपकी महफिल में हम आए हैं । 
शब्‍द भी वही, ख्‍याल भी वही,
सपने भी वही, मिजाज भी वही,
बस्‍स बहुत दिनों बाद
आपकी महफिल में हम आए हैं ।
हो गईं हों अगर कुछ गलतियां
तो माफी का हक बनता है
आपने भी तो कहां
इतने बरसों हमें याद किया ।


कुछ कहना चाहता हूं

पर शब्‍द नहीं मिलते

होंठ कंपकपांते हैं मगर

कुछ नहीं कहते

तुमसे गिले शिकवे करुं

तो करुं कैसे

मेरे गिले शिकवों को

मुकम्‍मल अर्थ नहीं मिलते

अगर कहता भी मैं भला

तो तुमसे क्‍या कहता

क्‍योंकि मेरे शब्‍द आडे टेढे हैं

मेरी भाषा ही मौन है

तो तुम भला समझती कैसे

मैने तो इन बेमतलब बातों से

खुद को समझा रखा है

पर सोचता हूं कि तुम

कभी न कभी

जब पूछोगी अपने आप से

तो कैसे कह पाओगी

कि मैने खुद को खुद से छिपाकर रखा है।




मैंने हिम्‍मतों से हर पल को जीया है

असफलताओं के दौर को भी जी भर के जीया है

विष को कोई छूता भी नहीं

पर मैंने उसे शिव की तरह पीया है

जीवन के हर प्रश्‍न को

युधिष्ठिर की तरह हल किया है

पर उनसे क्‍या गिले‍शिकवे करूं

जिन्‍होंने हरदम मुझे ठगा है

कहना है तो सिर्फ इतना ही

कि हम वह नहीं जो यूं ही मिट जाएंगें

यूं ही नहीं हम खाक में मिल जाएगें

हम तो वह दीवार नहीं

जो एक धक्‍के से हिल जाएगें,

यूं ही खडे रहेंगें अडिग

हर वक्‍त, हर समय हम याद आएगें

जब भी बेबसी में तुम्‍हारी आंख का आंसू गिरेगा

और पश्‍चाताप तुम्‍हे रुलाएगा

दोनों हाथ से उसे थामने आ जाएगें

विषाद और अवसाद तो है ही नहीं

तुमसे कभी कोई शिकायत भी नहीं

आत्‍मबल से वज्र के सही

पर मन से तो मिटटी के माधो हैं

तुम्‍हें अगर पहचान नहीं

तो भी हमें कोई गिला शिकवा नहीं

क्‍योंकि मेरे जीवन में असफलताओं के दौर अभी बाकी हैं

विष के कई प्‍याले पीना अभी बाकी है।






पिछले कुछ दिनों के घटनाक्रम पर नजर डाली तो पाया कि श्रीराम सेना की गूंज अनेकों जगह पर है। श्रीराम सेना जिन व्यक्तियों ने बनाई मैं उनकी मानसिकता, ध्येय, लक्ष् और उद्देश् तो नहीं जानता पर एक आम नागरिक होने के नाते इतना तो जानता हूं कि किसी भी व्यक्ति या संस्था का काम मारना पीटना या लडकियों के साथ अभद्रता के साथ पेश आना नहीं है। वह पब जहां पर यह घटनाक्रम हुआ अब भी खुला हुआ है। अगर शराब की दुकानें सरकार की नीति के तहत खुली हैं तो ग्राहक के साथ मार पीट करके क्या हासिल होने वाला है। अगर पब अनाधिकत हैं तो उन्हें बंद करने की कानूनी कार्यवाही करिए। ऐसी संस्था जो पब में जाकर निरीह लोगों से पंगा लेती हो उसका नाम श्रीराम सेना क्यों। श्रीराम जन नायक थे। भगवान श्रीराम के नाम को ऐसे लोगों ने नि:संदेह शर्मसार किया है। जो लोग श्रीराम सेना के विरोधी हैं वह क्या इन्हें सडक पर उतर कर नंगा करके पीटे तो हिसाब बराबर हुआ समझना चाहिए। फिर तो काबुल में, पाकिस्तान में और इस तरह के अन् देशों में हो रहा है justified हो जाएगा। यदि धर्म के नाम पर कुछ करना ही है तो लडकियों को संस्कार दीजिए कि वह ऐसी जगहों पर जाएं। शराब की दुकान पर अवयस् लडके खुले आम शराब पीते हैं, कहीं उनकी मोटर साइकिल खडी है, कहीं खुद खडे हुए गाली गलौज कर रहे हैं उन्हें रोकिए। ऐसी सडकों पर रातभर रखवाली करिए जिन पर दिन में भी लडकियों का चलना दुश्वार है। ऐसी बसों में गुण्डों को अपनी ताक दिखाइए जहां खुले आम लडकियों पर फिकरे कसे जाते हैं। हिंदू तो वह हैं जो अच्छे प्रयोजनों के लिए महर्षि दधीचि की तरह अपनी अस्थियां भी दान देने की सामर्थ् रखता हैं और अधर्म होने पर अपने बंधु बांधवों का विरोध/संहार करने पर भी नहीं हिचकिचाता।


(अतुल शर्मा)


जब हो हर तरफ तन्हाई
रात हो घिर आई
धीरे से तुम सिसकना मत
चाँद से कुछ बातें करना
मुस्कराना
इठलाना
गुदगुदाना
और फिर प्यार से
ग़मों को अपने भूल जाना
देखोगे कि सुबह फैली हुई है
अपनी सौगात लेकर
रात की कालिमा को धोकर
जीवन निराशा की नहीं सुख की भाषा है
इस से भागना नहीं
अपने आगोश में पकड़ लेना
प्यार बांटना गम नहीं
मुस्कुराते रहना
सिसकना रोना नहीं.
(‘पतझड सावन वंसत बहार’ संकलन में प्रकाशित कविता)