यह शहर जाना पहचाना है
इसकी गलियां जानी पहचानी हैं
पर जब भी मैं इनसे गुजरता हूं
अक्सर गलत मोड मुड जाता हूं ।
लोग मिलते हैं
पर पहचानते नहीं
पूछने पर कहते हैं
हम आपको जानते नहीं ।
न जाने कैसे
मतलब होने पर
उन्हें याद हो ही जाता है
कि हम उनके बहुत करीब हैं ।
अब मैं भी इसी शहर का बाशिंदा हूं
मैं भी इसी भीड में शामिल हूं
ऐसी चाल को टेढी न कहना
इसको जमाने का दस्तूर कहते हैं दोस्तों
इस शहर को मतलबपरस्त न कहना
वर्ना मैं बुरा मान जाऊगां दोस्तों !


This entry was posted on Tuesday, August 07, 2012 and is filed under . You can follow any responses to this entry through the RSS 2.0 feed. You can leave a response, or trackback from your own site.

3 टिप्पणियाँ:

    दिगम्बर नासवा said...

    ये शहर नहीं बल्कि रहने वाले मतलब परास्त हो गए हैं ... स्वार्थी हो गए हैं ...

  1. ... on 8 August 2012 at 01:08  
  2. Smart Indian said...

    आपको स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई! अमर हो स्वतंत्रता!

  3. ... on 15 August 2012 at 19:52  
  4. प्रतिभा सक्सेना said...

    शहर वही ,पर मौसम बिलकुल बदला - नए व्यवहार चलन में आ गए हैं !

  5. ... on 19 August 2014 at 11:41