मैंने हिम्‍मतों से हर पल को जीया है

असफलताओं के दौर को भी जी भर के जीया है

विष को कोई छूता भी नहीं

पर मैंने उसे शिव की तरह पीया है

जीवन के हर प्रश्‍न को

युधिष्ठिर की तरह हल किया है

पर उनसे क्‍या गिले‍शिकवे करूं

जिन्‍होंने हरदम मुझे ठगा है

कहना है तो सिर्फ इतना ही

कि हम वह नहीं जो यूं ही मिट जाएंगें

यूं ही नहीं हम खाक में मिल जाएगें

हम तो वह दीवार नहीं

जो एक धक्‍के से हिल जाएगें,

यूं ही खडे रहेंगें अडिग

हर वक्‍त, हर समय हम याद आएगें

जब भी बेबसी में तुम्‍हारी आंख का आंसू गिरेगा

और पश्‍चाताप तुम्‍हे रुलाएगा

दोनों हाथ से उसे थामने आ जाएगें

विषाद और अवसाद तो है ही नहीं

तुमसे कभी कोई शिकायत भी नहीं

आत्‍मबल से वज्र के सही

पर मन से तो मिटटी के माधो हैं

तुम्‍हें अगर पहचान नहीं

तो भी हमें कोई गिला शिकवा नहीं

क्‍योंकि मेरे जीवन में असफलताओं के दौर अभी बाकी हैं

विष के कई प्‍याले पीना अभी बाकी है।






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11 टिप्पणियाँ:

    मन से said...

    बेहतरीन भावों से रची बसी कविता जो हर परिस्थिति में जीवन जीना सिखाती है। आपको मेरी शुभकामनाएं।

  1. ... on 16 August 2009 at 03:16  
  2. ताऊ रामपुरिया said...

    बहुत लाजवाब रचना. शुभकामनाएं.

    रामराम

  3. ... on 17 August 2009 at 01:21  
  4. Himanshu Pandey said...

    खूबसरत कविता । बेहतरीन भाव । धन्यवाद ।

  5. ... on 17 August 2009 at 02:18  
  6. Smart Indian said...

    "मैंने हिम्‍मतों से हर पल को जीया है
    असफलताओं के दौर को भी जी भर के जीया है
    विष को कोई छूता भी नहीं
    पर मैंने उसे शिव की तरह पीया है
    "

    बेहतरीन रचना. पूरी कविता ही सुन्दर है पर उपरोक्त पंक्तियाँ खासकर अच्छी लगीं. बधाई!

  7. ... on 17 August 2009 at 04:43  
  8. दिगम्बर नासवा said...

    मैंने हिम्‍मतों से हर पल को जीया है
    असफलताओं के दौर को भी जी भर के जीया है

    जो vish को पीता है वही तो शिव बनता है .......... आशा से भरी सुन्दर रचना ......

  9. ... on 18 August 2009 at 06:03  
  10. प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

    सुन्दर रचना....बहुत बहुत बधाई....

  11. ... on 26 August 2009 at 21:24  
  12. ताऊ रामपुरिया said...

    इष्ट मित्रों एवम कुटुंब जनों सहित आपको दशहरे की घणी रामराम.

  13. ... on 27 September 2009 at 21:12  
  14. Smart Indian said...

    साल की सबसे अंधेरी रात में
    दीप इक जलता हुआ बस हाथ में
    लेकर चलें करने धरा ज्योतिर्मयी

    कड़वाहटों को छोड़ कर पीछे कहीं
    अपना-पराया भूल कर झगडे सभी
    झटकें सभी तकरार ज्यों आयी-गयी

    =======================
    दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ!
    =======================

  15. ... on 16 October 2009 at 17:21  
  16. Pushpendra Singh "Pushp" said...

    बहुत खूब बेहतरीन रचना
    आभार

  17. ... on 15 December 2009 at 06:59  
  18. Smart Indian said...

    होली की हार्दिक शुभकामनाएं!

  19. ... on 27 February 2010 at 20:28  
  20. Unknown said...

    my name atul vishwakarma
    your good later

  21. ... on 15 September 2012 at 06:10