कुछ कहना चाहता हूं

पर शब्‍द नहीं मिलते

होंठ कंपकपांते हैं मगर

कुछ नहीं कहते

तुमसे गिले शिकवे करुं

तो करुं कैसे

मेरे गिले शिकवों को

मुकम्‍मल अर्थ नहीं मिलते

अगर कहता भी मैं भला

तो तुमसे क्‍या कहता

क्‍योंकि मेरे शब्‍द आडे टेढे हैं

मेरी भाषा ही मौन है

तो तुम भला समझती कैसे

मैने तो इन बेमतलब बातों से

खुद को समझा रखा है

पर सोचता हूं कि तुम

कभी न कभी

जब पूछोगी अपने आप से

तो कैसे कह पाओगी

कि मैने खुद को खुद से छिपाकर रखा है।



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8 टिप्पणियाँ:

    Smart Indian said...

    वाह भाई वाह! देर याद दुरुस्त याद. कहाँ थे इतने दिनों से?

  1. ... on 21 May 2010 at 11:32  
  2. राज भाटिय़ा said...

    बहुत खुबसुरत कविता धन्यवाद

  3. ... on 21 May 2010 at 11:50  
  4. Atul Sharma said...

    धन्‍यवाद अनुराग जी और राज जी,
    आपकी प्रेरक टिप्‍पणियां ऊर्जा देती हैं।

  5. ... on 21 May 2010 at 12:39  
  6. Himanshu Pandey said...

    मन की अनुभूतियों को कहने के लिए अक्सर छोटॆ पढ़ जाते हैं शब्द !
    सुन्दर रचना !

    एक बात कहनी थी .. आपकी ब्लॉग लिस्ट में ’नया प्रयत्न’ देख रहा हूँ ! यह मेरी कविताओं का ब्लॉग था । पिछले बहुत दिनों से मैं अपनी कविताएं भी अपने मुख्य ब्लॉग सच्चा शरणम् पर पोस्ट करता हूँ...वस्तुतः ’नया प्रयत्न’ ससच्चा शरणम् में विलयित हो चुका है । असुविधा न हो तो इस ब्लॉग लिस्ट में ’सच्चा शरणम् शामिल कर लें ! इसकी नयी प्रविष्टियों का ख्याल तब आ सकेगा आपको !

  7. ... on 22 May 2010 at 17:15  
  8. दिगम्बर नासवा said...

    अच्छा लिखा बहुत ही अतुल जी ....

  9. ... on 27 May 2010 at 04:59  
  10. VIVEK VK JAIN said...

    bahut khoobsoorat!

  11. ... on 2 August 2010 at 08:11  
  12. Smart Indian said...

    जन्म दिन की अनंत शुभकामनायें!

  13. ... on 3 October 2010 at 20:38  
  14. Smart Indian said...

    आपको, परिजनों तथा मित्रों को दीपावली पर मंगलकामनायें! ईश्वर की कृपा आपपर बनी रहे।

    ********************
    साल की सबसे अंधेरी रात में*
    दीप इक जलता हुआ बस हाथ में
    लेकर चलें करने धरा ज्योतिर्मयी

    बन्द कर खाते बुरी बातों के हम
    भूल कर के घाव उन घातों के हम
    समझें सभी तकरार को बीती हुई

    कड़वाहटों को छोड़ कर पीछे कहीं
    अपना-पराया भूल कर झगडे सभी
    प्रेम की गढ लें इमारत इक नई
    ********************

  15. ... on 25 October 2011 at 22:19