(अतुल शर्मा)
जब हो हर तरफ तन्हाई
रात हो घिर आई
धीरे से तुम सिसकना मत
चाँद से कुछ बातें करना
मुस्कराना
इठलाना
गुदगुदाना
और फिर प्यार से
ग़मों को अपने भूल जाना
देखोगे कि सुबह फैली हुई है
अपनी सौगात लेकर
रात की कालिमा को धोकर
जीवन निराशा की नहीं सुख की भाषा है
इस से भागना नहीं
अपने आगोश में पकड़ लेना
प्यार बांटना गम नहीं
मुस्कुराते रहना
सिसकना रोना नहीं.
(‘पतझड सावन वंसत बहार’ संकलन में प्रकाशित कविता)
जब हो हर तरफ तन्हाई
रात हो घिर आई
धीरे से तुम सिसकना मत
चाँद से कुछ बातें करना
मुस्कराना
इठलाना
गुदगुदाना
और फिर प्यार से
ग़मों को अपने भूल जाना
देखोगे कि सुबह फैली हुई है
अपनी सौगात लेकर
रात की कालिमा को धोकर
जीवन निराशा की नहीं सुख की भाषा है
इस से भागना नहीं
अपने आगोश में पकड़ लेना
प्यार बांटना गम नहीं
मुस्कुराते रहना
सिसकना रोना नहीं.
(‘पतझड सावन वंसत बहार’ संकलन में प्रकाशित कविता)