(अतुल शर्मा)

नभ से गिरती बारिश की कोई बूँद
जब धीरे से तुम्‍हें स्‍पर्श कर ले
या ओस की पहली किरण
जब तुम्‍हें ‍हल्के से चूम ले
ठंडी हवा का मस्‍त सा झोंका
तुम्‍हें प्‍यार से सहला दे
चांदनी की हलकी सी रुमानियत
तुम्‍हें धीरे से छू जाए
भीगी माटी की सौंधी सी खुश्‍बू
तुम्‍हें प्‍यार से सराबोर कर दे
तब
तुम एक बार मुझे याद करना
मेरे प्‍यार की गर्माहट को महसूस करना
तपती धूप में रिमझिम फुहारों सा मेरा प्‍यार
सर्द जाडों की रातों में सुलगती आग सा मेरा प्‍यार
दूर तक फैले रेगिस्‍तान में हो जैसे
छोटा सा नखलिस्‍तान मेरा प्‍यार
कांटों के बीच सुर्ख गुलाब सा प्‍यार
बरसते बादलों में इद्रधनुष सा मेरा प्‍यार
स्‍वार्थ की दुनिया के बीच यह मासूम प्‍यार
दो दिलों को जोडता यह कैसा खुमार
सुहाने सफर की नींद सा यह प्‍यार
सुबह की उनींदी बोझिल आंखों का प्‍यार
हिमगिरी से उतरती गंगा सा प्‍यार
पहाड से गिरते झरनों सा प्‍यार
पक्षि‍‍यों के कलरव सा गूंजता यह प्‍यार
दुनिया से अहसासों में सबसे खूबसूरत यह प्‍यार
इन सब अहसासों में तुम मुझे याद करना
और फिर मुझसे सिर्फ मुझसे प्‍यार करना।

अतुल शर्मा



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6 टिप्पणियाँ:

    Smart Indian said...

    बहुत रमणीय कविता है, धन्यवाद!

  1. ... on 3 January 2009 at 08:56  
  2. shelley said...

    नभ से गिरती बारिश की कोई बूँद
    जब धीरे से तुम्‍हें स्‍पर्श कर ले
    या ओस की पहली किरण
    जब तुम्‍हें ‍हल्के से चूम ले
    ठंडी हवा का मस्‍त सा झोंका
    तुम्‍हें प्‍यार से सहला दे
    चांदनी की हलकी सी रुमानियत
    तुम्‍हें धीरे से छू जाए
    भीगी माटी की सौंधी सी खुश्‍बू
    तुम्‍हें प्‍यार से सराबोर कर दे
    तब
    तुम एक बार मुझे याद करना
    bahut hi pyari kavita hai.

  3. ... on 3 January 2009 at 23:22  
  4. Jimmy said...

    bouth he aacha post kiyaa hai aappne yaar keep it up

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  5. ... on 6 January 2009 at 23:30  
  6. राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

    अतुल भाई.........सॉरी........मगर थोडी कविताई और चाहिए इसमें.......!!वैसे भाव अच्छे हैं.........उसके बावजूद दिल को पूरी तरह छु नहीं पाती आपकी ये कविता...एक बार आप भी दुबारा पढ़ें..........शायद तब समझ पायें........देखिये अन्यथा ना लेंगे.........इस वक्त मेरे मन में यही भाव आए..........बस.......!!

  7. ... on 7 January 2009 at 12:46  
  8. BrijmohanShrivastava said...

    शर्मा जी तपती धूप में रिमझिम फुआरों जैसा आपका प्यार तो फिर यह बंदिश क्यों कि सिर्फ़ और सिर्फ़ मुझसे ही प्यार करना

  9. ... on 8 January 2009 at 00:35  
  10. Atul Sharma said...

    भाई राजीव जी
    एक तो यह कविता पवित्र मन से एक ऐसे प्रेमी की ओर से लिखी गई है जो अपनी प्रेमिका के हदय में स्‍थान पाना चाहता है आपके हदय में नहीं । आपके दिल को अगर छू नहीं सकी तो इसके लिए क्षमाप्रार्थी हूं । आप मेरी दूसरी कविताएं भी पढिए उम्‍मीद है कोई न कोई आपके दिल को अवश्‍य छुएगी ।
    ब्रजमोहन जी, बंदिशें आवश्‍यक हैं वर्ना रिश्‍तों की बंदिशें ही गिर जाती हैं और फिर सारी दुनिया बेबफाई का रोना रोती है ।

  11. ... on 8 January 2009 at 10:38