यह शहर जाना पहचाना है
इसकी गलियां जानी पहचानी हैं
पर जब भी मैं इनसे गुजरता हूं
अक्सर गलत मोड मुड जाता हूं ।
लोग मिलते हैं
पर पहचानते नहीं
पूछने पर कहते हैं
हम आपको जानते नहीं ।
न जाने कैसे
मतलब होने पर
इसकी गलियां जानी पहचानी हैं
पर जब भी मैं इनसे गुजरता हूं
अक्सर गलत मोड मुड जाता हूं ।
लोग मिलते हैं
पर पहचानते नहीं
पूछने पर कहते हैं
हम आपको जानते नहीं ।
न जाने कैसे
मतलब होने पर
उन्हें याद हो ही जाता है
कि हम उनके बहुत करीब हैं ।
अब मैं भी इसी शहर का बाशिंदा हूं
मैं भी इसी भीड में शामिल हूं
ऐसी चाल को टेढी न कहना
इसको जमाने का दस्तूर कहते हैं दोस्तों
इस शहर को मतलबपरस्त न कहना
वर्ना मैं बुरा मान जाऊगां दोस्तों !
कि हम उनके बहुत करीब हैं ।
अब मैं भी इसी शहर का बाशिंदा हूं
मैं भी इसी भीड में शामिल हूं
ऐसी चाल को टेढी न कहना
इसको जमाने का दस्तूर कहते हैं दोस्तों
इस शहर को मतलबपरस्त न कहना
वर्ना मैं बुरा मान जाऊगां दोस्तों !
3 टिप्पणियाँ:
दिगम्बर नासवा said...
ये शहर नहीं बल्कि रहने वाले मतलब परास्त हो गए हैं ... स्वार्थी हो गए हैं ...
Smart Indian said...
आपको स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई! अमर हो स्वतंत्रता!
प्रतिभा सक्सेना said...
शहर वही ,पर मौसम बिलकुल बदला - नए व्यवहार चलन में आ गए हैं !