(अतुल शर्मा)

क्या तुमने देखी हैं कभी
अधनंगे बदन पर
समय की झुर्रियां
या कभी महसूस किया है
उन तपते बदनों पर
सूरज की आग को
जिन हाथों में कभी हथौड़े
और कभी फावड़े होते हैं
जिनके घर कभी टाट के
और कभी सिर्फ़ आस के होते हैं
धूप में जो जला देते हैं
अपनी सारी जवानी
और ठंडी रातों में
खांसते हुए गुज़ारते हैं
अपना बुढापा
या तुमने भी देखा है उन्हें
मेरी तरह ही उचाट निगाहों से
और पास से गुज़रते हुए
तुमने भी फेर लिया है
मुंह दूसरी ओर।
अतुल शर्मा




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8 टिप्पणियाँ:

    BrijmohanShrivastava said...

    नये साल की हार्दिक शुभकामनाएं / इतनी फुर्सत कहाँ कि आस पास देख सकें /बहुत स्पष्ट और ठोस बात कही है आपने

  1. ... on 28 December 2008 at 23:20  
  2. Smart Indian said...

    बहुत सटीक शब्द हैं. जिस दिन हम सच्चाई से नज़रें चुराना बंद कर देंगे, उस दिन यह दुनिया सही मायनों में सबके लिए जीने लायक हो जायेगी.

  3. ... on 28 December 2008 at 23:45  
  4. Unknown said...

    बहुत ही सुंदर! अति सुंदर रचना!

  5. ... on 29 December 2008 at 07:16  
  6. बाल भवन जबलपुर said...

    Nice

  7. ... on 29 December 2008 at 10:18  
  8. मुकेश कुमार तिवारी said...

    Atul,

    Very good coining of Feelings & Expressions. Keep it up.

    Mukesh K. Tiwari
    http://tiwarimukesh.blogspot.com

  9. ... on 29 December 2008 at 22:26  
  10. तरूश्री शर्मा said...

    बेहदज बढ़िया अभिव्यक्ति। एक बढ़िया कविता के लिए साधुवाद।

  11. ... on 30 December 2008 at 02:40  
  12. Atul Sharma said...

    आप सभी की टिप्‍पणि‍यों के लिए धन्‍यवाद । कुछ बेहतर रचनाएं आपकी तारीफों, आलोचनाओं और टिप्‍पणि‍यों का इंतजार कर रहीं हैं ।

  13. ... on 8 January 2009 at 10:43  
  14. sanjai baurai said...

    Oh! what a wonderful expression of thoughts. Really cannot believe that you are such a fantastic writer as well. My best wishes with you always for doing such a lovely thing. Here is something little for you
    बस के गेट पर लटके हुए मुसाफिरों से कंडक्टर ने कहा- भाइयों, अंदर हो जाओ इस तरह गेट पर लटकना आपकी जान के लिए खतरनाक है।

    इसके बाद भी जब यात्री गेट से नही हटे तो कंड क्टर गुस्से से बोला- तुम्हें तुम्हारी पत्नी की कसम अंदर हो जाओ।

    इतना सुनना था कि जो मुसाफिर सीटों पर बैठे थे वे भी गेट पर आकर लटक गए।
    Sanjai Prasad

  15. ... on 14 January 2009 at 21:56